नहीं ! हरगिज़ नही। मै आपकी बेटी हूँ और बेटी ही कहलाना चाहती हूँ। मै आपका बेटा नही हूँ और ना ही आपका बेटा बनना चाहती हूँ। कयूँ बनूँ? कयूँ कहलाऊँ मै आपका बेटा? क्या मेरा अपना कोई अस्तित्व नहीं है?
मेरी अपनी एक अलग पहचान है , वजूद है। जो भी काम मै कर रही हूँ वो मैं इसलिये कर रही हूँ क्यूँकि मैं कर सकती हूँ और करना चाहती हूँ। मै किसी भी काम को कुछ prove करने के लिए नही कर रही कि ” देखो मै भी किसी लड़के से कम नही”।
ऎसी सोच हमारे समाज मे क्यूँ हो गयी है? क्या बेटी कमा नहीं सकती? क्या बेटी घर चला नही सकती? क्या बेटी सारे बाहर के काम नहीं कर सकती? और अगर कर सकती है तो उसे प्रोत्साहन के रूप में ये कहना कि तू तो हमारी बेटी नहीं बेटा है, कहाँ तक सही है? ये कैसा प्रोत्साहन है जिसकी आड़ में भी एक discrimination है?
क्या सही में ये प्रोत्साहन के शब्द हैं? माँ-बाप यह कहकर गर्वित होते हैं, यहाँ तक की वो बेटी भी ये सुनकर खुश होती है, proud feel करती है कि मैंने आज आपका बेटा बनकर दिखा दिया ।अरे, तुमने अपना वजूद खो दिया है! और आपने उसका सम्मान और उसकी पहचान उससे छीन ली है ।विडम्बना ये है की दोनों ही इस बात से अनभिज्ञ हैं ।
जरा सोचिये, आप उसे ये भी तो कह सकते हैं कि “मेरी बेटी ने आज मेरा सर ऊंचा कर दिया”, “मेरी बेटी मेरी शान है”, “तू तो मेरा मान है”, ” मेरी बेटी हजारों में एक है” ।
इन सारे phrases में कोई comparison नहीं है । एक छिपी हुई इच्छा या सोच नहीं है।
आपके ऐसा कहने से कि “तू मेरी बेटी नहीं, बेटा है”, ऐसा एहसास होता है कि ये काम लड़के ही कर सकते हैं, लड़कियां नहीं और जो मैंने कर दिखाया तो मै बेटा बन गई क्यूंकि लड़कियां तो ये काम कर ही नहीं सकती न !!
कितनी ही लड़कियों को मैंने ये कहते सुना है कि “मैं किसी लड़के से कम हूँ क्या?”, “मैं ये prove करके दिखा दूंगी की मै भी किसी लड़के से कम नहीं” या “आपके १ नहीं २-२ बेटे हैं”।
क्यूँ comparison करना है? क्यूँ competition करना है? ये तो तुम्हे भी पता है कि अगर तुम अपने आप को ज्ञान, व्यवहार, सोच के आधार पर किसी से भी compare करो, चाहे वो लड़का हो या फिर लड़की, तो तुम किसी लड़के या लड़की से कम भी हो सकती हो या फिर ज्यादा भी हो सकती हो ।
हो सकती हो नहीं, ऐसा होगा ही। तो फिर अपने आप से ही competition और comparison क्यूँ न करें? “ हाँ मै पहले इतना अच्छा काम नहीं कर सकती थी या ये काम ही नहीं कर सकती थी लेकिन आज कर सकती हूँ। मैंने कर दिखाया। मैंने prove कर दिया कि मैं कमाल हूँ, intelligent हूँ, सक्षम हूँ और ऐसे ही कई achievements कर सकती हूँ। मेरे परिवार को इस बात का गर्व होगा की ये हमारी बेटी है ।ऐसी बेटी पाकर हम धन्य हो गए”।
ये सोच हो तो कितना अच्छा रहे, क्यूंकि इसमें कोई ईर्ष्या, कडवाहट, चिंता या अहम् नहीं है। है तो सिर्फ और सिर्फ आत्मसम्मान, खुद को बेहतर बनाने की चाह और कुछ अच्छा कर दिखाने की ख़ुशी ।ये तो हुई एक लड़की की सोच का विश्लेषण और शुद्धिकरण।
अब माता-पिता या उन सभी के लिए जो प्रशंशा करना चाहते तो हैं , करते भी हैं लेकिन, “ बेटी नहीं बेटा है तू तो” कहकर दबी हुई तुलना वाली सोच को कहीं ना कहीं सामने ले आते हैं। उनके लिए कहना चाहूंगी कि बेटी- बेटी होती है और बेटा- बेटा होता है। जैसे बेटा बेटी नहीं बन सकता उसी तरह बेटी भी बेटा नहीं बन सकती। उसे बेटे की जगह देनी भी नहीं चाहिए जबकि उसकी अपनी एक अलग जगह है ।
लड़का हो या लड़की, दोनों ही सामान रूप से सक्षम हैं ।हर वो काम जो आपका बेटा कर सकता है वो बेटी भी कर सकती है। इसका मतलब ये नहीं कि वो आपका बेटा बन गई। उसकी पहचान उससे मत छीनिए। उसे बेटी ही रहने दीजिये। ये उसका आत्मसम्मान है, और आपका मान है ।
एक सीधी सच्ची सी बात,
Priyanka
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so beautifully expressed…its so true …we dont feel appreciated when someone says we are doing our responsibilities like a son ….we are just doing what a daughter should do as well as can do.both son n daughter are equally capable …loved the article:)
Thanks niti.That’s what the article aims at.Change of thought process.
commendable.. and truth.. today also we hear there words.. and I have the same reply.. gr8 msg to everyone.. beautifully expressed In words
Thank you so much 💛
Beautifully drafted and written, a very thought provoking article indeed!
Keep on the good work Priyanka 👍
Thanks a lot dear 💛