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सही मायने में हमारा प्रेरणा-स्त्रोत कौन है ?

कहते हैं कि हमारे प्रेरणा-स्त्रोत हमारे आसपास ही होते हैं । बस जरुरत है तो उसे पहचानने और समझने की ।

ज्यादातर ये देखने में आता है कि हम उस प्रेरणा की तलाश बाहर की तरफ करते हैं, अपने अंदर नहीं ।

तो मेरा सवाल ये है कि  हम स्वयं अपने प्रेरणा-स्त्रोत क्यूँ नहीं बन सकते ? जो हम दूसरों में खोज रहे हैं वो क्या खुद में नहीं देख सकते ? ”

एक बात मुझे सोचने पर विवश कर देती है कि जब हम किसी परेशानी , शारीरिक पीड़ा , मानसिक यातना , दुविधा , या बुरे दिनों से गुजर रहे होते हैं , उस समय वो कौन होता है जो एक-एक क्षण हमारे साथ है और हमारे विचारों के सूक्ष्म से सूक्ष्म उतार-चढ़ाव का साक्षी है ?

वो मुश्किल समय बेहद संवेदनशील भी होता  है । तथ्य और चाह , आशा और निराशा के बीच फंसे हमारे विचारों और मनोदशा को उस समय संभालना जरुरी हो जाता है । हमें जरुरत होती है किसी ऐसे प्रेरणा-स्त्रोत की, जो एक अच्छे निर्देशक की तरह हमें उस परिस्तिथि से लड़ना, अपने आप को संभालना सिखाये । हमारे अंदर छुपी हमारी ही विशेषताओं को दिखाए ।

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कौन है जो हमें इतनी अच्छी तरह समझता है ?

वो और कोई नहीं , हम स्वयं ही हैं । क्या हमें हमसे बेहतर कोई और भला जान सकता है ?

हमसे बेहतर हमारी सोच और भावनाओं को कोई भी नहीं समझ सकता । इसलिए हमसे बेहतर सलाहकार और प्रेरणा स्त्रोत भी कोई नहीं हो सकता ।

हम सुनते भी हैं , पर हमारे दिमाग के उस हिस्से की जो हमें सत्य को स्वीकारने नहीं देता, लगातार सवाल करता है । “ मेरे साथ ही क्यूँ? ”  “मैंने किसका बुरा किया था जो मेरे साथ ऐसा हुआ?” इन सवालों का जवाब तो कभी मिलता नहीं पर हमें निराशा की तरफ धकेलने के लिए ये प्रश्न काफी होते हैं ।

हमें सही दिशा निर्देश देने में अगर कोई सक्षम है तो वो है हमारी आत्मा और हमारा अवचेतन मन । पर अफ़सोस कि हमने जीवन भर उन्हें इतना अनसुना किया कि अब उनकी आवाज हमारे मन तक पहुँचती ही नहीं । वो तो आज भी सही सलाह दे रहे हैं, प्रेरित कर रहे हैं; पर हम नहीं सुन पा रहे ।

ऐसे समय के लिए ही हमें अपने आप को इस तरीके से प्रशिक्षण देना होगा की हम अपनी आत्मा की सुनें , अपने अवचेतन मन को जाग्रत करने का प्रयास करें ।

जरा इसके फायदे देखिये :

१. आप किसी भी परिस्तिथि का सामना धेर्य और साहस के साथ करते है ।

२. आपके विचार पक्षपाती नहीं होते, यानि अगर बुरा समय है तो आप उसे स्वीकारते हैं पर अपने हौसले और लगन को कम नहीं होने देते ।

३. आपमें संबल आता है ।

४. सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आप किसी भी परिस्तिथि में खुश रहते हैं और शांति का अनुभव करते हैं ।

५. ऐसे में जब आपको दूसरों की सलाह भी मिलती है , भले ही वो सकारात्मक (positive) ढंग से मिले या नकारात्मक (negative) तरीके से , आप उसे रचनात्मक (constructive) तरीके से ही लेते हैं और अगर दूसरों की बातों में निराशावादी तत्व ज्यादा हो, तो उसे बाहर ही रोक देना भी आप सीख जाते हैं ।

उपरोक्त पाँचों बातों में एक कमाल की विशेषता ये है कि ये सिर्फ फायदे ही नहीं हैं , बल्कि अपनी आत्मा और अवचेतन मन को सुनने और स्वयं को अपना प्रेरणा-स्त्रोत बनाने के तरीके भी हैं । विश्वास नहीं होता तो एक बार फिर से ये ५ पॉइंट्स पढ़िए ।

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क्या आप इन विशेषताओं को अपने व्यक्तित्व के अनुकूल पाते हैं ?

तो इसका अर्थ ये हुआ कि आपने अपना प्रेरणा-स्त्रोत पा लिया है ।

ये तो हुई विकट और विपरीत परिस्तिथि में हमारे प्रेरणा-स्त्रोत की भूमिका । पर जीवन के और भी कई पहलु हैं और उन पहलुओं में हमारे ये प्रेरणा-स्त्रोत कैसे हमें प्रेरणा देते हैं – इसे मैं अपने अगले ब्लॉग पोस्ट में आपके साथ साझा करुँगी ।

तो जल्द ही वापस मिलेंगे ।

प्रियंका

दूसरा भाग

2 thoughts on “सही मायने में हमारा प्रेरणा-स्त्रोत कौन है ?”

  1. सही कहा है। prerna कोइ चीज नही है जिसको ऊँगली दिखा के कोइ कहे कि देखो यह रही प्रेरणा। इसको तो अंदर गहरा ही ढूंढना पड़ता है
    बहुत गहरा, तब हमे स्वयं को पहचानने की कोशिश करनी होगी। एक process और है। स्वंय से कही अकेले में सिर्फ एक घंटे तक बात करें खुल के daily.

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  2. आप खुद के प्रेरणा स्तोत्र तभी बन सकते हो जब आप खुद को सत्यता से पहचान सके, नहीं तो कई लोग खुद के प्रेरणा स्तोत्र होते है जिन्हें हम सेल्फ सेंटर्ड या अभिमानी कहते है, जिन्हें खुद के अलावा किसी और का कहा, नहीं समझ आता।

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