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दो ख्याल-एक प्रेरणादायक कविता

नमस्कार दोस्तों। आज मैं आपलोगों के लिए एक कविता लेकर आई हूँ। ये कविता मेरे मन में उठे दो ख्यालों पर आधारित है। इसीलिए इस कविता का शीर्षक है- दो ख्याल। यह कविता आपको सोचने पर मजबूर कर देगी कि जीवन जीने का सही तरीका क्या है। साथ ही साथ आपको इसका समाधान भी मिल जायेगा।

क्या आपको कविता पढ़ने की बजाय सुनने और देखने में ज्यादा आनंद आता है? तो फिर नीचे दी गई वीडिओ लिंक को क्लिक करें।

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पढ़ें।

दो ख्याल

देखा कुछ ऐसा इन दिनों
कि दो ख्याल आये।

जीवन कैसे जियें कि अंत में लगे-
“हाँ, हम भी कर कुछ कमाल आये।”

पहला ख्याल

जियो कुछ इस तरह कि अपने नाम की
पूरी दुनिया पर छाप पड़े।

करो कुछ ऐसा कि जाने के बाद भी
सब तुम्हारा नाम याद रखें।

प्रेमचंद, दिनकर, निराला की रचनाऐं
हम अभी भी दोहराते हैं।

अब्दुल कलाम हमारे भारत के हैं,
ये सोचकर कितना इतराते हैं।

या फिर जीवन उन गायकों, कलाकारों जैसा,
जो अपनी कृतियों में जिन्दा हैं।

या फिर नेताजी, शास्त्री, भगत सिंह जैसे,
इतिहास के पन्ने दें जिनकी साक्षी ऐसे वीर भी तो चुनिन्दा हैं।

हाँ सच में! जीवन हो तो ऐसा।
नहीं तो किसको रहेगी हमारी स्मृति?

अब इस निर्णय पर पहुँची ही थी
कि दूसरे ख्याल ने दस्तक दी।

क्यों चाहती हो,
कि तुम्हें याद रखे कोई?

और तुम्हें जानना ही क्यों है कि तुम्हारे जाने के बाद में
किसके मन में और कितनी हलचल हुई?

क्या सफल सिर्फ वही हैं,
जो नाम कर गये?

तो फिर उनके बारे में क्या कहोगी
जो गुमनाम ही सारा काम कर गये?

वो माता वो पिता जिन्होंने अपनों के लिए अपने स्वार्थ को त्याग दिया।
वो सिपाही जिसने सरहद पर अपनी जान को सौंप दिया।

वो डाॅक्टर वो सुरक्षाकर्मी जिसने हमारी सुरक्षा के लिए
आज अपनी जान को जोख़िम में डलवाया।

या वह अदृश्य दानी जिसने करोडो़ं दान किये
पर सोशल मीडिया में अपना फोटो नहीं छपवाया।

वो जो किसी एक इंसान, एक सोच, एक ज़िंदगी को बदल रहा है।
वो जो सकारात्मकता की ऊर्जा किसी एक के मन में,
थोड़ी सी ही सही पर भर रहा है।

मैं निःशब्द थी इस पक्ष को सुनकर।
समझ ही नहीं आया क्या सही है,
क्योंकि दोनों ही ख्याल सही लगे परस्पर।

मन के इस मंथन से फिर एक समाधान आया,
नाम से ज्यादा कर्म और सोच का महत्व है, ये समझ आया।

एक बात की इन दोनों पक्षों में ही समानता थी,
उनके मन में अपने नाम की नहीं अपने कर्म के प्रति प्रधानता थी।

नाम होना, न होना ये तो किस्मत की बात है।
पर कर्म कैसे करें, ये तो अपने हाथ है।

तो, कर्म करो और अच्छी सोच पर जोर दो।
बाकी सब ईश्वर पर छोड़ दो।

आशा करती हूँ कि आपको मेरे ये दो ख्याल और इसका समाधान सही लगा। मैं जानने के लिए उत्सुक हूँ कि आपके क्या विचार हैं। Please मुझे comment करके बतायें। अगर कविता अच्छी लगी तो इसे share जरूर करें।

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