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खुश कैसे रहें: खुश रहना है तो छोड़ दीजिये ये 26 आदतें

हम खुश रहने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं । वो सब कुछ करने के लिए तैयार हैं जो हमें सिखा सके कि हम खुश कैसे रहें

पर कभी-कभी खुश रहने के लिए कुछ चीज़ें “ ना ” करने का प्रण भी लेना ज़रूरी है ।

तो यहां मैंने २६ ऐसी बातों की सूची तैयार की है,  जिन्हें अमल कर आप भी हर समय खुश रहना सीख जायेंगे

Table of Contents

हम खुश कैसे रहें

1. दूसरों से बहुत उम्मीदें रखना बंद करें ।

आप दूसरों से यह उम्मीद रखते हैं कि वे आपकी हर बात से सहमत हों, आपका सम्मान करें, आपके विचारों को न केवल सुनें बल्कि उन्हें स्वीकार भी करें, आपसे प्यार करें।

अरे बस..बस।

 पहले आप बताएं, क्या आप दूसरों की अपेक्षाओं के अनुसार खुद को इस हद तक बदल सकते हैं ?

तो फिर ऐसी उम्मीद दूसरों से क्यूँ रख रहे हैं ?

२. खुद की तुलना दूसरों से कभी ना करें ।

तुलनाएँ आत्म-सम्मान को घटाती हैं, क्योंकि यह नकारात्मकता बढ़ाती है और कभी-कभी आपको हीन भावना से भी भर देती है।

आप कितनी भी कोशिश कर लें, कुछ लोग हमेशा आपसे आगे ही होंगे – विचारों में, ज्ञान में या फिर सम्पन्नता में । वैसे ही कुछ लोग आपसे पीछे और नीचे भी होंगे । इसीलिए तुलना करना व्यर्थ है ।

आप ईश्वर की अनूठी रचना हैं । जैसे आप अद्वितीय हैं उसी तरह अन्य भी हैं। फिर कोई तुलना कैसे हो सकती है ?

3.  ईर्ष्या ना करें ।

ईर्ष्या हमारे ह्रदय में छिपा वो दैत्य है जो दूसरों की अच्छाइयों ,प्रसिद्धी, प्रतिभा को देखते से ही परेशान हो जाता है । यह ईर्ष्या रुपी राक्षस दूसरों को नहीं बल्कि खुद को ही जलाता है।

अपने विचारों से इस राक्षस को खत्म करने के लिए, ईर्ष्या के इन 3 कारणों को जानना और उनपर विजय प्राप्त करना सीखें –

  • असुरक्षा
  • भय और
  • आत्मविश्वास की कमी

4. अपने दिमाग को खाली न रहने दें ।

“ खाली दिमाग, शैतान का घर ”– ये कहावत तो आपने सुनी ही होगी। ये शैतान हमारे व्यर्थ के विचार ही तो हैं जो हमें तुलना, ईर्ष्या, पुराने दुःख–दर्द, सभी की याद दिलाते रहते हैं ।

जब आप किसी काम में व्यस्त रहते हैं तो आपके विचार भी चैनलाइज्ड रहते हैं। परन्तु जब आप आवश्यकता से अधिक समय व्यर्थ व्यतीत करने लगते हैं , तो धीरे –धीरे आप अपने ही सामर्थ्य पर संदेह करने लग जाते है और अपने आत्मविश्वास और ख़ुशी को अपने ही हाथों कम करने लगते हैं ।

5. नकारात्मक भावनाओं से व्याकुल होना बंद करें ।

क्रोध, हताशा, चिंता, भय, आक्रोश- ये सभी नकारात्मक भावनाओं के साथ-साथ सामान्य मानवीय भावनाएं भी हैं। यानि ये हमारे विचारों और व्यक्तित्व का एक अंश होती हैं जिनके साथ चलने की आदत हमें होनी चाहिए ।

जीवन सभी सुखद पलों और परिस्थितियों का संग्रह नहीं हो सकता। तो अगर नकारात्मक विचार आ रहे हैं – भागिए मत, छुपिये मत – बस परिस्थिति को स्वीकार करें । आप शांत महसूस करेंगे।

6. छोटे-छोटे खुशी के लम्हों की उपेक्षा ना करें ।

चलिए कुछ छोटे-छोटे लम्हों को फिर से देखते हैं और आप बताइए कि आपको कैसा लगता है जब –

  • जब आपको कोई पत्र लिख कर देता है ?
  • जब आप एक समुद्र तट पर बैठे अपने चेहरे पर ठंडी हवा को महसूस करते हैं ?
  • जब आप किसी गाने को याद करने की कोशिश कर रहे थे और रेडियो पर वो ही गाना बज जाए?
  • जब अचानक से आपको कोई उपहार देता है ?
  • जब आप ड्राइव कर रहे होते हैं और रास्ते में एक भी रेड सिग्नल नहीं मिलता है ?

ऐसे अनगिनत ख़ुशी के पल हैं जिन्हें आप नजरअंदाज कर देते हैं क्योंकि आप किसी बड़ी खुशी की तलाश में हैं।

7. एक परफेक्शनिस्ट बनने की कोशिश ना करें ।

आप अपने मन में खुद के लिए एक आदर्श व्यक्तित्व का चित्र बनाते हैं जहाँ आपके पास हर क्षेत्र में पूर्णता है- चाहे वह काम हो या संबंध। सब आपसे खुश हों। इस प्रकार आप पहले से ही अपनी उम्मीदों को अपने ही नज़रों में इतना बढ़ा चुके हैं जो कि मिलना असंभव है।

  तो फिर खुश कैसे रहें ?

वास्तविक बनें और एक पूर्णतावादी(परफेक्शनिस्ट) बनने के लिए प्रयास करने के बजाय अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास करें।

8. अपने आपसे निराशाजनक बातें करना बंद करें।

खुद की काबिलियत पर संदेह, अपने आप को दया की नज़र से देखना, जिन बातों पर आपका वश नहीं उनमें भी अपने आप को दोषी समझना, ये सभी आत्म-पराजय या आत्म-विनाशकारी आदतें हैं।

आप अपने आप से ही कई निराशाजनक प्रश्न पूछने लग जाते हैं जैसे ” मैं अच्छा क्यों नहीं हूं?”, या “मैं कभी भी कोई काम सही नहीं कर सकता ” या “मैं कितना नाकारा हूँ जो मुझसे ऐसी गलती हो गयी”

जब भी आपके मन में अपने ही लिए ऐसे निराशाजनक प्रश्न उठें,  तो वापस पूछिए – ” जो भी कुछ हुआ, क्या मैं वास्तव में उसके लिए जिम्मेदार हूं?”, “क्या मेरे पास उन परिस्थितियों को नियंत्रित करने की शक्ति है?”

आत्म-चर्चा करना बहुत अच्छा है, लेकिन सकारात्मक, यथार्थवादी और विकास की मानसिकता के साथ।

9. हर चीज के लिए ‘हां’ कहना बंद करें ।

तो आप हर बात के लिए ‘हाँ’ कह देते हैं। यहां तक ​​कि जब आप लगातार सोच रहे हैं नहीं..नहीं..नहीं, मुझे इस काम के लिए हाँ नहीं करना, फिर भी मुंह से निकल जाता है “हाँ”।

आखिर आप “ना” क्यों नहीं कह सकते हैं?

जवाब कई हैं- आपको डर है कि लोग आपको गलत समझने लग जायेंगे, आपसे दूर हो जायेंगे । औरों से आपकी बुराई करने लग जायेंगे। कभी कभी आप इसलिए हाँ कर देते हैं क्यूंकि आप दूसरों की भावनाओं को आहत नहीं करना चाहते हैं या आप सभी को खुश रखना चाहते हैं।

अब ज़रा अपने बचपन को याद करें – जब आप आसानी से ना कह दिया करते थे और केवल वही किया करते थे जो आपको पसंद था और फिर भी, आपके दिल में वो ही मासूमियत और सच्चाई रहती थी ।

तो, क्यूँ न वैसा ही साफ़ दिल अभी भी रखें और हाँ केवल तभी कहें जब कहना चाहिए।

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10. हर समय ‘नहीं’ कहना भी बंद करें ।

पिछ्ले पॉइंट को पढ़ने के बाद, यह समझना बहुत ज़रूरी हो जाता है कि ‘हां’ और ‘नहीं’ कहने के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए।

यदि आपका ‘ नहीं ’ ” I can’t ” जैसा है, तो यह आपकी अनिच्छा को दर्शाता है। यदि आप नए अवसरों और रोमांच के लिए भी ना कह देते हैं तो यह आपकी उन्नति पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। समझदारी से निर्णय लें।

11. “ मैं बहुत व्यस्त हूँ ” ऐसा कहना बंद करें ।

हमारे मुंह से निकले शब्द हमारी भावनाओं को प्रभावित करते हैं। व्यस्तता अच्छी है लेकिन हर बार “मैं बहुत व्यस्त हूं” ऐसा कहते रहने से आपकी मानसिकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। धीरे-धीरे यह आदत लोगों से अलग-थलग रहने का बहाना बन जाती है। आप अपने ही आज को भरपूर जीने से वंचित रह जाते हैं।

12. बिना मांगे अपनी राय ना दिया करें ।

आपके इरादे चाहे कितने भी अच्छे क्यों न हों, बिना इजाज़त किसी की भी बात में अपनी राय के साथ ना कूदें।

अगर कोई आपसे आपके सुझाव नहीं मांग रहा है, तो इसका मतलब है कि उसे आपकी सलाह की जरूरत नहीं है। इस बात को स्वीकार करें और मुझे विश्वास है कि ऐसा करने से आपके पास अपनी प्रगति और खुशी के लिए अधिक समय मिलेगा ।

13. टाल-मटोल करने की आदत ना रखें ।

हममें से बहुत से लोगों को बिना किसी कारण के टाल-मटोल या काम को टालते रहने की बहुत ही बुरी आदत होती है। बाद में उन्हें समय पर अपना काम न करने का पछतावा भी होता है।

जितना अधिक आप अपना समय बर्बाद करते हैं, उतनी ही आपकी चिंता बढ़ती जाती है। प्राथमिकता के अनुसार अपने कामों का प्रबंधन करें। इसे नियमित रूप से करें और कुछ दिनों में परिणाम देखें। आप महसूस करेंगे कि आप पहले से अधिक खुश रहने लगे हैं।

14. अपने अतीत में रहना बंद करें।

आपका मन हमेशा अतीत की ओर ही क्यों भागता है?

इसका कारण ये हो सकता है कि या तो आप बीते खुशी के क्षणों को फिर से जीना चाहते हैं या अतीत के वो दुःख भरे पल आपको छोड़ते ही नहीं हैं।

याद रखिये कि बीते कल के वो खुशहाल पल जा चुके हैं, लेकिन यह वर्तमान क्षण आपके हाथों में है और केवल आप ही अपने वर्तमान को खुशहाल बना सकते हैं। इसी तरह आपका दर्द भी आपके अतीत के साथ चला गया है। अपने आप को मुक्त करें और नई यादें बनाने के लिए नए सिरे से शुरुआत करें।

15. हर समय अपनी समस्याओं के बारे में बात ना करें।

क्या आप एक ही चुटकुले पर बार-बार हंस सकते हैं ? नहीं ना ? तो फिर आप हर समय अपनी समस्याओं और कठिनाइयों पर क्यों रोते रहते हैं ?

जब तक आप जीवित हैं, तब तक समस्याएं भी रहेंगी । जिनका समाधान आपके बस में हैं, उन्हें खोजें और उनका हल निकालने का प्रयास करें । जिनका हल नहीं निकल सकता, उनसे प्रभावित हुए बिना उनके साथ जीना सीखिये और जब मन बहुत व्याकुल हो , तो इश्वर से मिली उन सभी चीज़ों को गिनें जो आपने बिन मांगे पाई है ।  

16. अपनी खुशियों का पीछा करना बंद करें।

क्या आप भी अपनी खुशियों को अपनी उपलब्धियों के मापदंड से नापते हैं ? ज्यादा हासिल किया तो खुश, कम किया तो दुखी ।

अगर हाँ, तो फिर ऐसा क्यों होता है कि जैसे ही आप कुछ हासिल करते हैं, अधिक हासिल करने की ललक आपको खुश करने के बजाय और अधिक असंतुष्ट बना देती है ?

 इसलिए ख़ुशी का पीछा करना बंद करो, इसे मापना बंद करो और आप महसूस करेंगे कि यह आपके आस-पास पहले से ही है ।

17. अपने असली व्यक्तित्व पर मुखौटा मत लगाओ ।

किसी ऐसे व्यक्ति के जैसा होने का नाटक करना बंद करें जो आप है ही नहीं । यह दिखावा बंद करो कि सब कुछ ठीक है जबकि आप अच्छा महसूस नहीं कर रहे । हर समय खुश रहने का नाटक करना बंद करें।

दूसरों को प्रभावित करने की कोशिश न करें। अपने व्यक्तित्व के अनुकूल रहें, खुश रहें।

18. अपनी खुशियों की कुंजी दूसरों के हाथों में मत दो ।

जब कोई आपकी तारीफ करता है तो आप खुश हो जाते हैं। जब कोई आपकी आलोचना करता है तो आप क्रोधित हो जाते हैं। जब कोई आपकी पीठ पीछे बातें करता है तो आप दुखी हो जाते हैं।

आप अपनी खुशी के लिए दूसरों पर निर्भर क्यों हैं?

आपके सुकून के पल दूसरों के विचारों, बातों और प्रतिक्रियाओं से प्रभावित नहीं होने चाहिए। भला आपकी खुशी की कुंजी किसी और की जेब में क्यूँ हो !

19. सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा समय ना बिताएं ।

 

एक उबाऊ रविवार को, जब आपके पास करने के लिए कुछ नहीं था, तो आपने फेसबुक खोला और उन सभी स्टेटस अपडेट्स, चेक-इन, उत्सवों और छुट्टियों की तस्वीरें देखीं। सभी खुश और मुस्कुराते हुए चेहरे दिखते हैं !

यह सब देखकर आप सोचते हैं – सब घूम फिर रहे हैं, मस्ती कर रहे हैं। एक मैं हूँ, जो घर में हूँ । कितनी बोरिंग ज़िन्दगी है मेरी । ये भावना आपको दुखी करने के लिए काफी होती है । इसलिए जैसे ही आपको लगे कि संचार का यह साधन सामाजिक तुलना और ईर्ष्या को बढाने लगा है, तो समझ लीजिये कि आपको एक ब्रेक की आवश्यकता है ।

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20. जो आपके पास नहीं है, उसके बारे में सोचना बंद करें ।

हर पल अपने अभावों की ओर अपना ध्यान केंद्रित किये रहना ये दर्शाता है कि आप ईश्वर के आभारी नहीं हैं। आपके लिए आपके वर्तमान का कोई मोल ही नहीं ।

चलिए, आज आप खुद पर एक एहसान करें। एक नोटबुक बनाएं उन चीजों पर ध्यान दें, जिनके लिए आप आभारी हैं और उन्हें लिखें । आप पायेंगे कि यह सरल सी क्रिया आपके मनोदशा को कैसे स्वस्थ कर देगा ।

यदि आप ईश्वर के प्रति कृतज्ञता में रहते हैं, तो दुर्भाग्य भी आपको खुश होने से नहीं रोक सकता है ।

21. खुशी के लिए भौतिक संपत्ति पर आश्रित ना रहे ।

यह एक भौतिक दुनिया है जहां हमारा पद हमारी संपत्ति के साथ बढ़ता है और हमारी प्रतिष्ठा हमारे पद के साथ। हालांकि, हमें भी मालूम है कि यह खुश होने की गारंटी नहीं है। अगर ऐसा होता तो हर अमीर आदमी खुश होता।

इसका मतलब है कि भौतिक संपत्ति आवश्यक है लेकिन इतनी भी नहीं कि आप इसके गुलाम बन कर रह जाएं।

22. खुद से बहुत सारी उम्मीदें लेकर ना जियें ।

उम्मीदें रखना अच्छा है लेकिन यह उचित मात्र में हो, जो आपके आत्म-सम्मान को बढ़ाने में मदद करे ।

अपने आप से बहुत सारी उम्मीदें रखना ऐसा है जैसे आप अपने आप को ही किसी काम में अच्छा होने की सजा दे रहे हैं।

गलतियाँ करना, गिरना, असफल होना स्वाभाविक है। आप हर समय अच्छा प्रदर्शन तो नहीं कर सकते ना !

23. अपनी अस्वास्थ्यकर जीवनशैली को बदलिए ।

ये तो आप भी मानेंगे कि हमारे स्वास्थ्य का हमारी खुशियों में बहुत बड़ा योगदान होता है। एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन बसता है।

चाहे वह अनियोजित भोजन का समय हो, असंतुलित आहार हो या शारीरिक और मानसिक व्यायाम की कमी हो या फिर धूम्रपान, शराब जैसी लतें हों – सभी आदतें अवसाद , चिड़चिड़ापन, दुःख का कारण बनते हैं।

24. किसी भी बात पर कुढना बंद करें ।

कुढ़न से पैदा होता है- आक्रोश कड़वाहट और दर्द जो बदले में तनाव का कारण बनता है।

इसीलिए ” let go ” यानि “ कुढ़न से मुक्त हो जाना ” मन की शांति के लिए सबसे अच्छा मंत्र है। इस मंत्र को कभी न भूलें।

25. नकारात्मक वातावरण में ज्यादा देर ना रहें ।

नकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाला व्यक्ति हर बात में कमी या दोष निकलता रहता है। ऐसे नकारात्मक प्रवृति के लोगों के साथ ज्यादा देर रहने से हमारे खुद के विचार प्रभावित होने लगते हैं।

इसलिए या तो अपने आपको इतना मजबूत बनाएं कि आपकी ख़ुशी किसी के विचारों से आहात ना हो या फिर ऐसे लोगों से औपचारिक मेलजोल ही काफी है ।

 आप अगर अकेले भी बैठे हों, तो भी ध्यान रहे कभी भी अपने विचारों से अपने आस-पास के वातावरण को नकारात्मक नहीं बनने दें।

26. दूसरों के कार्यों को शक की दृष्टि से देखना बंद करें ।

कभी कभी अतीत की घटनाएं हमारे विचारधारा को हमेशा के लिए बदल देती हैं। आप इतने डर जाते हैं कि आपको लगता है दूसरे आपका फायदा उठाने वाले हैं ।

सतर्क रहना अच्छा है लेकिन हर किसी पर शक न करें।

असल में तो जिन लोगों से हम अपने जीवनकाल में मिलते हैं, उनमें से अधिकांश आप में रुचि ही नहीं रखते हैं । वे सब अपने जीवन में इतने व्यस्त हैं कि वे आपके बारे में सोचते भी नहीं हैं।

क्या आपके पास सुझाव देने के लिए कोई और पॉइंट्स भी है कि हम खुश कैसे रहें ? नीचे कमेंट करके मुझे ज़रूर बताएं। अगर आपको यह आर्टिकल अच्छा लगा तो इसे अपने दोस्तों के साथ साझा करें।

प्रियंका

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