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प्रेरणा स्त्रोत की प्रतीक्षा मत करो, अपना दिया स्वयं बनो ।

आपने मेरा पिछला ब्लॉग पोस्ट तो पढ़ा ही होगा और पढके मन में कुछ हलचल भी हुई होगी । कुछ सवाल उठे होंगे, कुछ शंका भी होंगे । क्या आपके मन में ये विचार भी उठा कि अगर हम अपने आप को ही अपना प्रेरणा स्त्रोत बना दें तो दूसरों से कुछ नहीं सीख पाएंगे । हमारी सोच सीमित हो जायेगी, हम गलत निर्णय भी ले सकते हैं । वगैरह…वगैरह । तो चलिए आज इनका भी निवारण हो जाये ।

पहला भाग यहाँ पढ़ें

किसी से कुछ सीखना गलत नहीं । पर उन्ही के जैसा बनने की कोशिश करना भी सही नहीं । हम जो काम करते हैं उसमे हमारे व्यक्तित्व की झलक होनी चाहिए। वो ही हमें सफलता देती है ।

“वो बहुत बुद्धिमान है मुझे वैसा बनना है।”

तुम्हे उसके जितना बुद्धिमान (intelligent) बनना है? ये कैसे संभव है ? तुम्हारे पास उसका दिमाग ,उसका तजुर्बा और उसके सीखे सबक नहीं है।

किसी की उपलब्धियों पर खुश जरूर हों, पर इतने प्रभावित भी न हों कि अपनी उपलब्धियों की तुलना उनसे करने लगें , खिन्नचित्त (depressed) हों और छोटा महसूस करने लगें।

हर किसी में कुछ न कुछ ख़ास तो होता ही है। कुछ ऐसा जो स्वयं के लिए ही प्रेरणा स्त्रोत बन जाये और साथ ही साथ उसके हौसला रखने की वजह भी बने।

अगर हम दूसरों की उपलब्धियों पर हैरान होते हैं कि कैसे इस इंसान ने यह गज़ब का काम किया, कैसे ये व्यक्ति इतना मशहूर हो गया ?  उनकी बड़ाई करते हैं और उनसे प्रेरित भी होते हैं तो फिर अपनी उपलब्धियों, भले ही वो कितनी भी छोटी हो और अपनी योग्यताओं पर शक क्यूँ करते हैं ? क्या ये उपलब्धियां हमें उर्जा से नहीं भर देती ? अचानक बहुत सारी सकारात्मकता (positivity) चारों तरफ महसूस होती है। सब कुछ अच्छा लगता है । बाकी सारी समस्याएँ और मुश्किलें छोटी लगने लगती हैं। मन खुश और हल्का लगता है। ये सब सिर्फ इसलिए होता है क्यूंकि आप ऊपरी नहीं बल्कि आंतरिक ख़ुशी महसूस कर रहे हैं।आंतरिक जो की आत्मा से जुडी है और इसे ही आत्मिक ख़ुशी भी कह सकते हैं।

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मैंने पिछले ब्लॉग पोस्ट में भी लिखा था कि हमारी आत्मा और अवचेतन मन (subconscious mind) से हमारा सबसे गहरा सम्बन्ध है । वो हमारे हर विचार और हमारी काबिलियत से पूरी तरह अवगत हैं। आपने कई बार ये महसूस किया होगा की आप कुछ कार्य करते हैं और सबलोग आपकी काफी सराहना भी करते हैं, पर आपको अंदर से ख़ुशी नहीं मिल रही होती। मन ही मन असंतुष्टि रहती है। कुछ अंदर ही अंदर आपको खा रहा है।

क्या है वो ? कौन कर रहा है ये? क्यूँ ऐसे विचार आ रहे होते हैं ?

क्यूंकि मन ही मन आपको पता रहता है कि आप इससे बेहतर कर सकते थे । ये आपका बेस्ट (best) नहीं था । वो लोग ये नहीं जानते पर आपकी आत्मा को पता होता है और वो ही आपको आईना दिखा रही होती है । विश्लेषण करने पर आप पाते हैं कि आपने वो काम शायद उतने लगन से नहीं किया ,जितना आपको करना चाहिए था ।

हमारी आत्मा पक्षपाती (biased) नहीं होती। उसे अपने पराये का भेद करना नहीं आता । अगर वो खुश है यानि – ख़ुशी की वजह तो है और अगर वो कचोट रही है यानि सोचने सँभलने का गंभीर विषय तो है। अब आप ही बताइए, हमारी बेहतरी के लिए क्या ज्यादा जरुरी था हमरी आत्मा का विश्लेषण या लोगों की वाहवाही ?  इसीलिए मेरा मानना है कि हमारी आत्मा ही हमारी प्रमुख प्रेरणा स्त्रोत है।

वैसे ही दूसरों के विचारों पर इतना आश्रित हो जाना कि खुद के लिए क्या सही है , वो भी ना समझ पाना, ये गलत है। हम किसी और के विचारों की कठपुतली क्यूँ बनें ? दूसरों का मन हुआ तो तुम्हे अच्छा कहेंगे, तुम्हारी बड़ाई करेंगे और तभी तुम खुश होगे, क्यूँ ? आप दूसरों से राय ले सकते हैं पर आपके जीवन के निर्णय लेने की छूट और हक़ सिर्फ आपके पास होना चाहिए

जैसा कि आर्ट ऑफ़ लिविंग संस्था के गुरु श्री श्री रवि शंकर जी कहते हैं –

“दूसरों के विचारों के फुटबॉल मत बनो ”  

हमारे उत्थान के लिए श्रेष्ठ विकल्प तो ये ही है – “खुद की नज़रों में खरा उतरना । अपने आप को अपना प्रेरणा स्तोत्र बनाना ।” इसका अर्थ ये नहीं कि आप अभिमानी (arrogant) हो बल्कि ये कि आप आत्मविश्वासी (confident) हो ।

आपके विचारों और अनुभवों को मेरे साथ बांटिये । मुझे इंतज़ार रहेगा ।

प्रियंका

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3 thoughts on “प्रेरणा स्त्रोत की प्रतीक्षा मत करो, अपना दिया स्वयं बनो ।”

  1. बहुत ही सुंदर ढंग से कहा है। लेकिन जहां कोई शंका मन में आ जाये उसे तुरंत दूर भी करना चाहिए। किसी महापुरुष या महात्मा से या शास्त्रों से एसा सम्भव है।
    एक बात और, खुद बार बार गलती कर के सीखने से अच्छा है किसी दूसरे की गलतियों से सबक लेना।
    प्रियंका को ढेर आशिर्वाद और शुभ कामनाएं

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  2. अपने मौलिक विचारों को बहुत ही सुन्दर एवं सहज भाषा में अभिव्यक्त करने के लिए बधाई। आपने सही कहा कि हर व्यक्ति की अपनी – अपनी योग्यताएं होती हैं, तदनुसार उनकी रुचियां भी होती हैं अत: किसी की किसी से तुलना उचित नहीं। ये बात विशेष रूप से उन बच्चों के विषय में भी लागू होती है जो कभी – कभार औपचारिक शिक्षा में पिछे रहने के बावजूद जीवन में बहुत आगे बढ़ जाते हैं।

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  3. इंसान अगर सच्चाई से अपने को परखे तो कोई दो राय नहीं कि वो अपना सबसे बड़ा प्रेरणा स्तोत्र बन सकता है। आज ये गीत याद आ गया,

    तोरा मन दर्पण कहलाए
    भले, बुरे, सारे कर्मों को
    देखे और दिखाए
    तोरा मन दर्पण कहलाए
    तोरा मन दर्पण कहलाए…
    मन ही देवता, मन ही ईश्वर
    मन से बड़ा ना कोई
    मन उजियारा, जब जब फैले
    जग उजियारा होए

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