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एक नयी पहचान [ कहानी ]

मेरी यादों की किताब बड़ी रंगीन है।
कुछ खुशियों भरे दिन,
कुछ बचपन की बातें।
वो दोस्तों संग ठहाके,
और हजारों सपने बुनती आँखें।

“अरे वाह! कितनी सूंदर कविता है। ये डायरी है किसकी?” राशि ने जिज्ञासावश डायरी के पहले पन्ने को देखा। नाम लिखा था- संगीता शर्मा।

“माँ की डायरी? माँ लिखती भी है!” राशि के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। उसे माँ के इस रूप का कोई अंदाजा न था। अब तो उसने एक-एक कर सारी कवितायेँ पढ़ डाली। छंदों-अलंकारों से सजी एक-एक कविता ऐसी थी मानो सच्चे मोतियों की माला। पन्नों के बीच में दबे संगीता के लिखे कुछ खत भी दिखे। राशि ने एक खत को निकाला और पढ़ना शुरू किया।

प्यारी माँ

ये शब्द लिखते ही मेरी आँखों में बिलकुल वैसी ही चमक आ जाती है जैसे तुम्हारे चेहरे को देखकर आती थी। अब तुम तो इस दुनिया में नहीं, इसीलिए जब भी तुमसे बातें करने का मन करता है तो अपने मन की सारी बातें इन पन्नों में उड़ेल देती हूँ । ऐसा लगता है तुम पास बैठी सुन रही हो।

माँ! कुछ महीनों में 50 साल की हो जाउंगी मैं। उम्र के इस पड़ाव में कभी-कभी ये सोच कर मन भारी हो जाता है कि मैंने जीवन में क्या किया? मेरा जीवन तो यूँ व्यर्थ ही बीत रहा है। वही सुबह से लेकर रात तक घर के काम। उदासीन सी है मेरी जिंदगी! अपने लिए, अपने आत्म-विकास के लिए कुछ भी नहीं किया और अब तो इतनी उम्र हो गयी है कि कुछ कर भी नहीं सकती।

बाकी सब अपने-अपने जीवन में व्यस्त हैं। और एक मैं हूँ जो खुद को सबकी जिंदगी में ढूंढ रही हूँ। मेरे दिन तो पति और बच्चों का ख़याल रखते, उनके बारे में सोचते-सोचते ही निकल गए। मैं तो जैसे कहीं खो ही गयी हूँ।

मैं, संगीता, कहाँ हूँ मैं? राशि-जिया की मम्मी, राकेश की पत्नी, बस इन्ही नामों से मेरी पहचान है।

माँ, मुझे अब अहसास होता है की हम भाई-बहनों ने तुम्हे कितना तंग किया। हर छोटे-बड़े काम में माँ चाहिए थी। और तुम हमारे लिए,परिवार के लिए फिरकी की तरह घूमती रहती। अब लगता है तुम्हारे भी तो कई अधूरे ख्वाब, कुछ करने की इच्छा रही होगी। मैंने तो तुम्हारे पास बैठकर कभी ये पूछा ही नहीं। ऐसा क्यों होता है माँ? हर घर की यही कहानी क्यों है? एक औरत का वजूद दूसरों से ही क्यों होता है? उसके सपने तो जैसे वो मायके में ही अपनी बाकी अनमोल चीजों के साथ एक बक्से में बंद कर ससुराल आ जाती है।

माँ मुझे गलत मत समझना। ऐसा नहीं है कि मुझे मेरी जिम्मेदारियां बोझ लगती है। पर हूँ तो इंसान ही। कभी-कभी मन में ऐसे ख़याल आ जाते हैं। तब मैं इन पन्नों में सब लिख देती हूँ। तुम्हारे जाने के बाद पिछले 10 सालों से ये डायरी ही माँ की तरह सब सुनती है और रखती है स्वयं तक।

मुझे कवितायेँ लिखने और गाने का कितना शौक था। इसीलिए तो संगीत में एम्.ए. किया था। संगीत में ही कैरियर बनाना चाहती थी पर ससुराल वालों को पसंद नहीं था। मैं चुपचाप मान गयी। अपने सबसे बड़े सपने के टूटने का दर्द मैंने महसूस किया है माँ। इसीलिए मैंने प्रण लिया कि मेरी जिया और राशि को कभी ऐसे समझौते नहीं करने दूँगी।

जिया को मेडिकल में जाना था,पर घरवालों ने मना किया। सबने कहा कि डॉक्टरी की पढ़ाई करेगी तो 28 की उम्र तक तो पढ़ाई ही चलती रहेगी। फिर शादी कब करेगी? पर मैं जिया के लिए, उसके सपनों के लिए सबसे लड़ी और आज वो दिल्ली में डॉक्टरी की पढ़ाई कर रही है।

मेरी छुटकी, मेरी राशि को इंटीरियर डिजाइनिंग करनी थी, और वो भी देश के सबसे अच्छे इंस्टिट्यूट से। घर की माली हालत उस समय ऐसी न थी, पर मैंने सबके खिलाफ जाकर अपने गहनों को बेच कर उसकी फीस दी। उनके सपने पूरे होते देख ऐसा लगता है कि मैं अपने सपने पूरे कर रही हूँ। बहुत ख़ुशी होती है, पर फिर भी माँ! दिल के एक कोने में अभी भी एक कसक तो है।

तुम्हारी संगीता।

राशि की आँखों से झरझर आंसू बहे जा रहे थे। माँ की डायरी पढ़ ऐसा लगा मानो दुःख से उसका कलेजा मुँह को आ रहा था।

“माँ! तुमने कितना सहा है, पर बस और नहीं।” मन ही मन कुछ सोच लिया था राशि ने और उसकी मुस्कराहट और आँखों की चमक मानो कह रही हो कि जो सोचा है वो पूरा करके रहूंगी मैं।

एक महीने बाद

रविवार की सुस्ताई सी दोपहरी में संगीता और राकेश अपने बगिया में बैठे बातें कर रहे थे। अचानक किसी ने पीछे से संगीता की आँखों को ढका।

“कौन है? जिया!!!” दो पल में ही जिया के स्पर्श को पहचान गयी संगीता। “तुम अभी कैसे? सर्दियों की छुट्टियां होने में तो अभी वक़्त है न?”

“देखो न पापा, माँ तो फट से पहचान गयी।” जिया ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा।

“ये तो गलत बात है संगीता।” राकेश ने भी अपनी बेटी का साथ दिया।

“अरे, मैं तो इन दोनों को इनकी खुशबू से ही पहचान लूँ।” संगीता ने बड़े गर्व से कहा।

“हमारे मन में क्या है वो भी?” राशि उनके तरफ बढ़ती हुई बोली।

“हाँ बिलकुल। और आप दोनों को पता था न कि जिया आ रही है ? सरप्राइस दे रहे थे?”

“सरप्राइस तो तुम्हारी बेटियां अब तुम्हे देंगी।” राकेश ने मुस्कुराते हुए कहा।

“मतलब?”

“मतलब ये माँ,” जिया ने अपनी माँ के दोनों कन्धों पर अपने हाथ रखे और पास रखी कुर्सी पर बैठाते हुए कहा,”कि आज तक आपने हमारे सब सपनों को पूरा किया। हमारा हमेशा साथ दिया। अब हमारी बारी है।”

“अब आप अपनी आँखें बंद करिये और जब तक हम न कहें खोलियेगा मत।” राशि ने उत्साहित लहजे में कहा।

संगीता को लगा की उसकी गोद में कुछ रखा है। उसने पुछा,”क्या है ये?”

“आप खुद ही देख लीजिये।”

संगीता के सामने एक किताब रखी थी। नाम था- ‘मेरी नयी पहचान’ और सुनहरे अक्षरों में छपा था, कवियत्री- ‘संगीता शर्मा’। किताब के पीछे संगीता की एक प्यारी सी तस्वीर थी।

अवाक सी संगीता अपनी दोनों बेटियों की ओर देखने लगी। “पर.. पर.. ये तो मैंने अपनी डायरी में लिखा था। मेरी डायरी?”

राशि ने अपनी माँ की तरफ डायरी बढ़ाते हुए कहा,”ये लीजिये माँ, आपकी डायरी। एक दिन आप इसे अपनी मेज पर ही भूल गयी थी।”

“और अगर राशि ये डायरी नहीं पढ़ती तो हमें कभी पता ही नहीं चलता कि हमारी माँ के कितने सपने ऐसे ही धुल में लिपटे पड़े हैं।” जिया प्यार से अपनी माँ का चेहरा अपनी हथेलियों में भरते हुए बोली। “आप हमारे सपनो में अपने सपनों को ढूंढ रही थी, पर ऐसा नहीं होता माँ।”

“हाँ माँ! दूसरों की आँखों से अपने सपने नहीं देखे जा सकते। वो तो हमें खुद ही पूरे करने पड़ते हैं। नहीं तो खुश भले ही रहो पर फिर भी एक टीस तो मन में हमेशा उठती रहेगी कि काश मैं..।” राशि ने एक सलाहकार की भांति अपनी माँ को समझाया।

संगीता अपनी बेटियों को बस एकटक देखती रह गयी।

“और इतना ही नहीं माँ,” राशि बोली। “हमने तय किया है कि आपके संगीत का रियाज़ फिर से शुरू होगा और 1 महीने बाद आप इन्ही कविताओं को अपनी मधुर आवाज में गाकर रिकॉर्ड करेंगी। आपके लिए यू-ट्यूब चैनल, इंस्टाग्राम पेज की भी तैयारी हो गयी है। जल्द ही दुनिया भर के लोग आपको देखेंगे और सुनेंगे।”

“50 वां साल आपके जीवन को एक नयी पहचान देने वाला है माँ। आप तो बस सपनो को भरपूर जीने की तैयारी शुरू कर दीजिये।” जिया बोली।

“जा संगीता जा! जी ले अपनी जिंदगी।” दोनों बेटियों ने पूरे फ़िल्मी लहज़े में कहा और सभी खिलखिलाकर हंस पड़े। आज कई सालों के बाद संगीता की हंसी उसकी आँखों में दिख रही थी।

© Priyanka Kabra

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